उपसर्ग और प्रत्यय Upsarg Aur Pratyay

उपसर्ग और प्रत्यय Upsarg Aur Pratyay का अर्थ एवं उदाहरण
उपसर्ग ( Upsarg ) 
उपसर्ग ' उस शब्दांश या अव्यय को कहते हैं , जो किसी शब्द के पहले आकर उसका विशेष अर्थ प्रकट करता है । यह दो शब्दों ( उप + सर्ग ) के योग से बनता है । ' उप ' का अर्थ ' समीप ' , ' निकट ' या ' पास में है । ' सर्ग ' का अर्थ है सृष्टि करना । ' उपसर्ग ' का अर्थ है पास में बैठकर दूसरा नया अर्थ वाला शब्द बनाना । ' हार ' के पहले ' प्र ' उपसर्ग लगा दिया गया , तो एक नया शब्द ' प्रहार ' बन गया , जिसका नया अर्थ हुआ ' मारना ' । उपसर्गों का स्वतंत्र अस्तित्व न होते हुए भी वे अन्य शब्दों के साथ मिलकर उनके एक विशेष अर्थ का बोध कराते हैं । उपसर्ग शब्द के पहले आते हैं । जैसे — ' अन ' उपसर्ग ' बन ' शब्द के पहले रख देने से एक शब्द ' अनबन ' बनता है , जिसका विशेष अर्थ ' मनमुटाव ' है । कुछ उपसगों के योग से शब्दों के मूल अर्थ में परिवर्तन नहीं होता , बल्कि तेजी आती है । जैसे- ' भ्रमण ' शब्द के पहले ' परि ' उपसर्ग लगाने से अर्थ में अंतर न होकर तेजी आई । कभी - कभी उपसर्गों के प्रयोग से शब्द का बिलकुल उलटा अर्थ निकलता है । 
उपसर्गों के प्रयोग से शब्दों की तीन स्थितियाँ होती हैं 
( १ ) शब्द के अर्थ में एक नई विशेषता आती है , 
( २ ) शब्द के अर्थ में प्रतिकूलता उत्पत्र होती है , 
( ३ ) शब्द के अर्थ में कोई विशेष अंतर नहीं आता । यहाँ उपसर्ग और शब्द ' का अंतर समझ लेना चाहिए । शब्द अक्षरों का एक समूह है , जो अपने में स्वतंत्र है , अपना अर्थ रखता है और वाक्यों में स्वतंत्रतापूर्वक प्रयुक्त होता है । लेकिन , उपसर्ग अक्षरों का समूह होते हुए भी स्वतंत्र नहीं है और न स्वतंत्ररूप से उसका प्रयोग ही होता है । जब तक किसी शब्द के साथ उपसर्ग की संगति नहीं बैठती , तब तक उपसर्ग अर्थवान् नहीं होता ।

उदाहरण:

अति - (आधिक्य ऊपर) अतिशय, अतिरेक, 

अधि - (मुख्य) अधिपति, अध्यक्ष

अधि - (श्रेष्ठ,ऊपर) अध्ययन, अध्यापन, अधिकार

अनु - (क्रम, पश्चात) अनुक्रम, अनुताप, अनुज, अनुक्रम, अनुरूप

अप - (लघुता,हीनता) अपकर्ष, अपमान, अपशब्द, अपयश

अनु - (क्रम)  अनुकरण, अनुमोदन.

अप - (हीनता) अपकार, अपजय, 

अपि -(आवरण) अपिधान = अच्छादन

अभि - (अधिक,ओर,समीप्य) अभिनंदन, अभिलाप, अभियान

अव - (निषेध) अवगणना, अवतरण;औगुण

 आ - (पासून, पर्यंत) आकंठ, आजन्म; 

उत् - (ऊपर   उत्कर्ष, ) उत्तीर्ण, उद्भिज्ज

उप - (निकटता) उपाध्यक्ष, उपदिशा; 

उप - (गौण) उपग्रह, उपवेद, उपनेत्र

दुर्, दुस् - (बुरा,हीन, दुष्ट) दुराशा, दुरुक्ति, दुश्चिन्ह, दुष्कृत्य, 

नि -(अत्यंत) निमग्न, निबंध

नि - (भीतर) निकामी, निजोर, 

सम् - (पूर्णता, संयोग), संस्कार, संगीत, संहार

सम् - (बराबर, संयोग, ) संयम, संयोग, संकीर्ण, 

सु - (सुखी,सुंदर) सुभाषित, सुकृत, सुग्रास; 

सु - (सुखी,अच्छा,सुंदर, भाव, सहज) सुगम, सुकर, स्वल्प;  सुयश, सुकर्म, सुकवि। 

सु - (अधिक) सुबोधित, सुशिक्षित.सुडौल, सुजान

कुछ शब्दों के पूर्व एक से अधिक उपसर्ग भी लग सकते हैं। उदाहरण

प्रति + अप + वाद = प्रत्यपवाद

सम् + आ + लोचन = समालोचन

वि + आ + करण = व्याकरण

उर्दू उपसर्ग:

उपसर्ग -   अर्थ -   शब्दरूप

अल - निश्र्चित, अन्तिम - अलविदा, अलबत्ता

कम - हीन, थोड़ा, अल्प - कमसिन, कमअक्ल, कमज़ोर

खुश - श्रेष्ठता के अर्थ में - खुशबू, खुशनसीब, खुशकिस्मत, खुशदिल, खुशहाल, खुशमिजाज

ग़ैर - निषेध - ग़ैरहाज़िर ग़ैरकानूनी ग़ैरवाजिब ग़ैरमुमकिन ग़ैरसरकारी ग़ैरमुनासिब

दर - मध्य में - दरम्यान दरअसल दरहकीकत

ना - अभाव - नामुमकिन नामुराद नाकामयाब नापसन्द नासमझ नालायक नाचीज़ नापाक नाकाम

फ़ी - प्रति - फ़ीसदी फ़ीआदमी

ब - से, के, में, अनुसार - बनाम बदस्तूर बमुश्किल बतकल्लुफ़

प्रत्यय का अर्थ--👇👇👇
Pratyay ka Arth
प्रत्यय की परिभाषा
शब्दों के बाद जो अक्षर या अक्षरसमूह लगाया जाता है , उसे ' प्रत्यय ' कहते हैं । प्रत्यय ' दो शब्दों से बना है - प्रति + अय । ' प्रति ' का अर्थ ' साथ में ' , ' पर बाद में है और ' अय ' का अर्थ ' चलनेवाला ' है । अतएव , ' प्रत्यय ' का अर्थ है ' शब्दों के साथ , पर बाद में चलनेवाला या लगनेवाला ' । प्रत्यय उपसर्गों की तरह अविकारी शब्दांश हैं , जो शब्दों के बाद जोड़े जाते हैं । जैसे- ' भला ' शब्द में ' आई ' प्रत्यय लगाने से ' भलाई ' शब्द बनता है । यहाँ प्रत्यय ' आई ' है ।

प्रत्यय ( Pratyay ) दो प्रकार के होते हैं-

1-कृत प्रत्यय 

2-तद्धित प्रत्यय

1. कृत प्रत्यय

वह शब्दांश जो क्रियाओं (धातुओं) के अंत में लगकर नए शब्द की रचना करते हैं कृत प्रत्यय कहलाते हैं । कृत प्रत्यय के योग से बने शब्दों को (कृत+अंत) कृदंत कहते हैं ।

जैसे- वच् + अन् = वचन, घट+ अना= घटना, लिख+आवट= लिखावट आदि।

2.तद्धित प्रत्यय

जो प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम अथवा विशेषण के अंत में लगकर नए शब्द बनाते हैं तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं।

जैसे- आध्यात्म+ इक= आध्यात्मिक , पशु+ त्व= पशुत्व आदि।

उपसर्ग एवं प्रत्यय कई बार शब्द इन दोनों के मेल से बनते हैं उपसर्ग विभिन्न भाषाओँ में प्रयोग होते हैं जिनमे से प्रमुख निम्नलिखित हैं   -

(i) संस्कृत के उपसर्ग

(ii) हिन्दी के उपसर्ग

(iii) उर्दू के उपसर्ग

(iv) उपसर्ग की तरह प्रयुक्त होने वाले संस्कृत के अव्यय

प्रत्यय: ( Pratyay ) 

प्रत्यय (suffix) उन शब्दांश को कहते हैं जो किसी अन्य शब्द के अन्त में लगाये जाते हैं। इनके लगाने से शब्द के अर्थ में भिन्नता या वैशिष्ट्य आ जाता है।

उदाहरण:-

यह किसी व्यक्ति की विशेषता दर्शाते समय उपयोग होता है। जैसे यह पहलवान बहुत बलवान है।

धन + वान = धनवान, विद्या + वान = विद्वान

बल + वान = बलवान, उदार + ता = उदारता

सफल + ता = सफलता, पण्डित + ई = पण्डिताई

चालाक + ई = चालाकी, ज्ञान + ई = ज्ञानी

इसका उपयोग एक वचन शब्दों को बहुवचन शब्द बनाने के लिए किया जाता है।

भाषा + ओं = भाषाओं, शब्द + ओं = शब्दों

वाक्य + ओं = वाक्यों, कार्य + ओं = कार्यों

नदी + याँ = नदियाँ, प्रति + याँ = प्रतियाँ

धन्यवाद


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